Monday, February 11, 2008

सच्चाई और ईमान को परखने लगा है
लगता है खुदा पीकर बहकने लगा है

कल तौबा करके आया था खुदा के सामने
आज मयकदे को देखकर मचलने लगा है

सह न सका हो गयी जब ग़म की इंतिहा
बरसों का रुका बादल बरसने लगा है

ताउम्र भागता रहा लोगों की भीड़ से
अब कब्र में दुश्मन को भी तरसने लगा है

टूटा जो इश्क में तो साकी ने दी पनाह
मयखाने में जाकर वो अब संभलने लगा है

इस कदर तन्हाई से घबराया हुआ है
हर कमरे में आइना वो रखने लगा है

क्या खता हुई जो गुनाहगार बन गया
किताबे माजी के सफ़े पलटने लगा है

हमदर्द बनके आया था वो कत्ल कर गया
अब दोस्तों के नाम से डर लगने लगा है

1 comments:

Ravi Rajbhar said...

very-2 special
i like your all gazal.