Saturday, February 23, 2008

बस एक खता के बदले.....

कितने रिश्ते खोये मैंने एक खता के बदले
कितने लम्हे भिगोए मैंने एक खता के बदले

आरजू नहीं,जुस्तजू नहीं,हसरतें भी अब कहाँ
सपने लुटाये मैंने बस एक खता के बदले

पछताया,रोया मगर पिघला नहीं वो संग

दर्द का दरिया दे गया बस एक खता के बदले

हँस के हर एक सजा मैं करता गया कुबूल
जीने की सजा सुना गया बस एक खता के बदले

बस झूठ का पुलिंदा सा बन के रह गया
कितनी खतायें कर गया बस एक खता के बदले

या खुदा अब तू ही कुछ बड़प्पन दिखा
कितना रुलाएगा मुझे बस एक खता के बदले




2 comments:

AVNISH SHARMA said...

या खुदा अब तू ही कुछ बड़प्पन दिखा
इस लाइन मैं बड़प्पन की जगह अगर आप कुछ और शब्द लिखती शायद और ज्यादा सुन्दर लगता

जैसे दिलदारी

AVNISH SHARMA said...

या खुदा अब तू ही कुछ बड़प्पन दिखा
इस लाइन मैं बड़प्पन की जगह अगर आप कुछ और शब्द लिखती शायद और ज्यादा सुन्दर लगता

जैसे दिलदारी