बिखरे ख़्वाबों को सीने से लगा रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है
ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है
मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है
धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है
रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है
नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है
लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है
bap re.....itna dard hai isame.
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