Monday, February 11, 2008

फिर शाम जा रही है,फिर रात आ रही है
फिर से मेरी तन्हाई मुझको बुला रही है

आंधियो ठहरो,अभी गिराओ न दरख्त
एक चिडिया अपने बच्चे को दाना खिला रही है

अपनी बेबसी को मैं कैसे करूं बयां
इधर खडी है तू उधर कजां बुला रही है

चाँद ,तारे,फूल सब खामोश से क्यों हैं
लगता है कोई माँ कहीं लोरी सुना रही है

हर शब मेरी तन्हाई का साथी है माहताब
हो जाऊंगा तनहा कल अमावस आ रही है

2 comments:

Ravi Rajbhar said...

Pallavi Mam,
ham to aapke gazalon ke murid ho gaye.

koti-2 madhai aap uhin likhate rahiye.

Mere Man Ki bat said...

Pallavi Jee,
Hamane aapke sare nazam padha. sabhi bahut hi zivant se hai.padhate samay yaisa yehsas hota hai ki kuchh apane hi ander ghat raha hai.mai bhi ek parayas karne me laga ho agar kuchh safalta hath lagi to aapko zarur suchit karna chahunga.
Aap yu hi likhti rahe.