शाम है ग़मगीन रात भी उदास है
साए तेरी यादों के मेरे आसपास हैं
शब भर गुजार आया मयखाने के अन्दर
बुझती नहीं है फिर भी ये कैसी प्यास है
ये दिल भी तो कमबख्त मेरी मानता नहीं
जो जा चूका है दूर उसी की तलाश हैy
सीखा कहाँ से तुमने ग़म में भी मुस्कुराना
जीने की ये अदा तो बस फूलों के पास है
उसके देखने से हुआ इश्क का गुमान
अल्लाह जाने सच है या मेरा कयास है -
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
-
मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
sach hai sach me.
Post a Comment