Tuesday, February 26, 2008

शाम है ग़मगीन रात भी उदास है
साए तेरी यादों के मेरे आसपास हैं

शब भर गुजार आया मयखाने के अन्दर
बुझती नहीं है फिर भी ये कैसी प्यास है

ये दिल भी तो कमबख्त मेरी मानता नहीं
जो जा चूका है दूर उसी की तलाश हैy

सीखा कहाँ से तुमने ग़म में भी मुस्कुराना
जीने की ये अदा तो बस फूलों के पास है

उसके देखने से हुआ इश्क का गुमान
अल्लाह जाने सच है या मेरा कयास है -