Monday, March 31, 2008

ये रात कितनी हसीन है

ये रात कितनी हसीन है
काली स्याह रात की चादर पर
परियों ने सितारे टांक दिए हैं और
रजनीगंधा ने महका दिया है
इस मदहोश रात को...

ये हसीन आलम और
तुम मेरे पहलू में
बस और कोई ख्वाहिश नहीं अब...

इस रात को चाँद का
सफ़ेद टीका लगा आया हूँ
कहीं किसी की नज़र न लग जाए...


Sunday, March 30, 2008

my dream date...

काश कभी ऐसा हो
तुम और मैं डेट पर चलें...

दो रंगीन पतंगों पर बैठकर
आसमान पे चलें
किसी बादल से लिफ्ट ले लें
और पैर लटकाकर उस पर बैठें
फलक की सैर करें

उसके बाद
चाँद की चटाई पर
थोडा सुस्ताएं
और मुट्ठी भर भर कर
तारों के चने खाएं...

सर्दी लगने लगे तो
सोते हुए सूरज से
चुपचाप कुछ अंगारे उठा लायें
अपने हाथ सेक लें...

रात भर हवाओं का
मीठा गीत हम सुनें
और जब सुबह की ओस से
चाँद गीला होने लगे तो
हम भी सूरज की किरणे पकड़कर
वापस अपनी छत पर उतर जाएं..

काश कभी हम डेट पर जाएं...



Friday, March 28, 2008

तुम्हारा घर सजा दिया है

ओफ्फो... कितना अस्तव्यस्त रहते हो तुम
आज तुम्हारे घर गयी थी
तुम्हारे ऑफिस चले जाने के बाद
कोई भी चीज़ तुम्हारी

ठिकाने पर नहीं मिलती है...

पंखा चालू था
खिड़की भी खुली...
बारिश आ गयी तो?
बिखरे हुए सिगरेट के टुकड़े
फैले हुए अखबार
उफ़,चादर तक घड़ी नहीं करते हो...

और तो और...
मेज़ पर कुछ ख़याल भी पड़े थे
बेतरतीब से...

तुम्हारा कमरा ठीक कर दिया है
सब ठिकाने पर रख दिया है
और तुम्हारे बेपर्दा ख्यालों को
अपने लफ्ज़ ओढा दिए हैं मैने
और एक नज्म में लपेट कर
करीने से दराज में रख दिया है...


चाँद की बुढ़िया

देखो तो... चाँद की चरखा चलाती बुढ़िया
आज कितना सूत कात रही है
सारा आसमान भर गया है बादलों से
लगता है चाँद से कुछ कहासुनी हुई है

बिलकुल मेरी दादी की तरह है
जब भी मुंह फुलाती थी
घर का सारा काम अकेले ही कर जाती थी...

कोई बात नहीं...

कितना संगदिल हूँ मैं
आज बेटे ने तोड़ दिया
एक कीमती वास और...
मैं डांट बैठा उसे
ये भी न कह पाया की
बेटा...कोई बात नहीं...

अब सोचता हूँ
कितना आसमान सा दिल था तुम्हारा
मैं तुमसे वफ़ा न कर सका
और याद है मुझे आज भी
जब सुनाया था मैंने तुन्हे
अपना फैसला...
कुछ पल खामोश रही तुम
और कितनी आसानी से कह गयी
कोई बात नहीं......


Thursday, March 27, 2008

हिरोशिमा के लिए...

इस बस्ती का रोग पुराना
शब उजड़ी और दिन वीराना

चेहरे अनजाने हैं सारे
दुःख सबका जाना पहचाना

अरमानों की राख से होकर
साँसों का बस आना जाना

सबके दिल बंजारे जैसे
न घरबार न कोई ठिकाना

पंछी,गुलशन सहमे सहमे
कोयल गाये ग़म का तराना

यारो पहले ऐसा न था
कभी शहर था ये मस्ताना

या रब और किसी बस्ती को
ऐसा दिन तू अब न दिखाना





शुक्रिया मेरे ख्वाबो

शब की नर्म गोद में
पलकों के महफूज़ साए में
सोये हुए कुछ नन्हें ख्वाब
लेते हैं एक अंगडाई और
फैलाकर अपनी बाहें
ले लेते हैं मुझे अपने आगोश में
रात भर थपकी देते हैं
अपनी नन्ही हथेलियों से
बुनते हैं रेशमी ख्यालों के धागे

दिन भर की उलझनों से थकी मैं
खो जाती हूँ इन ख्यालों में
और जीती हूँ
कुछ बेहद रूमानी लम्हे
कुछ अनकही ख्वाहिशें
कुछ भीगी भीगी यादें
कुछ खुशबू में लिपटे एहसास

पता नहीं कब ,थककर
ये ख्वाब भी अलसाने लगते हैं
और धीरे से सो जाते हैं
एक के ऊपर एक गिरकर

तब,सुबह की पहली ओस के साथ
मैं जागती हूँ और
मीठी सी खुमार भरी आवाज़ में
कहती हूँ...
शुक्रिया मेरे ख्वाबो
हकीकत हर दिन मुझे क़त्ल करती है
और तुम....
हर शब मुझे जिंदा कर देते हो..

Tuesday, March 25, 2008

दंगे की तस्वीरें

कुछ जिस्म तड़प रहे हैं
कुछ रूहें कराह रही हैं
कुछ कुचले हुए ख्वाब
कुछ दम तोड़ती उम्मीदें
इधर उधर बिखरी पड़ी हैं

लहू बहा जाता है
तमाम नालियों में
उफ़,पहचाना भी नहीं जाता
कौन सा कतरा हिन्दू का है और
कौन सा मुसलमान का
नल खोलने से भी डरता हूँ
क्या पता इसमें भी....

बेशुमार बच्चे गहरी नींद सोये है
जिनमे से कई
शायद कभी नहीं उठेंगे
एक ताली बजाता बन्दर भी है
शायद बैटरी अभी बाकी है इसकी

एक हाथ उस कार के पास पड़ा है
दूसरा तो ढूंढ़ना भी नामुमकिन है

दिल बैठा जाता है मेरा
पर क्या करूं,पेशे से मजबूर हूँ
दंगे की तस्वीरें कल अखबार में देनी हैं
अरे हाँ...और मंत्री जी का वो बयान भी कि
पीड़ित परिवारों को दिया जायेगा
उचित मुआवजा....

एक वादा...

अगर मैं तेरा आसमान नही
तो कोई बात नही
मुझे अपनी ज़मीन बनाकर
अपने पैर टिका ले
भले ही आसमान को तू छू न सके
तेरे पैरों की ज़मी हिलने नही दूंगी
तुझे डगमगाने नही दूंगी
ये वादा है मेरा....


अगर मैं तेरी मंजिल नही
तो कोई बात नही
मुझे अपना रास्ता ही बना ले
तेरी मंजिल से तुझे मिलाने से पहले
तेरा साथ नही छोडूंगी
ये वादा है मेरा....

अगर मैं तेरे जीवन की रौशनी नही
तो कोई बात नही
मुझे अपनी जिंदगी की स्याही बना ले
खुली आंखों से रौशनी में जी ले
जब आँखें थक कर बंद होंगी
तो तू अकेला नही होगा
मैं ही मैं दिखूंगी तुझे
ये वादा है मेरा....

अगर मैं तेरी खुशी नही
तो कोई बात नही
आंसू का कतरा बनाकर
पलकों में छुपा ले
जब खुशी तुझसे रूठेगी
तब तेरे सारे ग़मों को साथ ले
मैं बह निकलूँगी
ये वादा है मेरा.....



Monday, March 24, 2008

दौलत की आबदारी में

जितने भी इखलाक थे उस नादारी में
गुम हो गए सब दौलत की आबदारी में

यादों से मेरी मुझे महरूम न करो
ताज बन जाते हैं ऐसी यादगारी में

नाकाबिले शिफा हूँ,बीमारे इश्क हूँ
यूं वक्त न जाया करो तीमारदारी में

ए कजां जाओ अभी सोना नहीं मुझको
लुत्फ़ अब आने लगा अख्तर शुमारी में

ख्वाहिशों ने भी आना छोड़ दिया है
जितनी थीं वो बह गयी गौहरबारी में


नादारी- गरीबी
आबदारी - चमक दमक
नाकाबिले शिफा- लाइलाज
कजां- मौत
अख्तर शुमारी- बेचैनी से रात काटना
गौहरबारी- आंसू बहाना








इस कदर वो शख्स ग़म-ए- दौरां का शिकार है
शमा-ए-बज्म था वो अब चरागे मजार है

जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चारागरी पे हमको ऐतबार है

आओ फरिश्तों,आलमे फानी से ले चलो
शबे वस्ल के लिए ये दिल बेकरार है

आबे हयात से तेरे अश्कों से भिगो दे
दामन मेरा ज़रा ज़रा सा दागदार है

और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है
भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर

क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर

जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर

सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर

झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर

तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर

अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर

एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर

बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर

Wednesday, March 19, 2008

आओ तुम्हे अपना बना लूं
चांदनी से चुरा कर थोडा सा उजाला
तुम्हारी सूरत को निहारूं
धरती से मांगकर थोडी सी हरियाली
तुम्हे चुनरी पहना दूं

इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार ले
गुलाल बनाऊं
तुम्हारे साथ होली मना लूं
बारिश के छींटे मिटटी पर गिराकर
तुम्हारे लिए इत्र बना दूं
गुलमोहर से इसरार कर
उसके फूलों में अपनी मोहब्बत मिलाऊँ
तुम्हारे रास्ते में बिछा दूं

बादलों तक जाऊ
अपने अश्कों को उन पर रख आऊं
तुम पर बरसाऊँ
कुछ तारे तोड़ लाऊँ
तुम्हारे दामन में डाल दूं
तुम्हारी सारी ख्वाहिशों कों
अपने ख़्वाबों में घोल दूं
एक नयी दुनिया बनाऊं

अगर तुम हाँ कर दो तो
तुम्हारे सारे ग़म अपने नाम कर लूं
अपने हिस्से की खुशियों से
तुम्हारे जीवन कों संवार दूं
पाकीजा तावीज़ बना के
तुम्हे अपने सीने से लगा लूं

आओ तुम्हे अपना बना लूं..

Tuesday, March 18, 2008

दो छोटी नज्मे ...

एक रोज़ ग़म ने मेरा दरवाजा खटखटाया
मैंने दरवाज़ा खोला ,पास बैठाया
ग़म ने अपना दर्द बताया
कभी किसी ने नहीं अपनाया
मैंने तरस खाकर कुछ देर पनाह क्या दी
बेशर्म.. आज तक रुका है
जाता ही नहीं....


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पिछले बरस जब वो आया था तो
धूप की एक गठरी थमा गया
बोला..जोडों के दर्द में सिकाई कर लेना
दवाओं के पैसे ही बचें

अब के बरस मैं गयी तो
एक इन्द्रधनुष टांग आई दीवार पर
दोस्त मेरा तस्वीरें बनाता है
रंगों के पैसे ही बचें...


पूनम की रात आँगन में आया न करो
चांदनी को इस तरह लजाया न करो

मुझ जैसे लोग हो न जाये बदगुमा कही
बेवजह ही तुम यूं मुस्कुराया न करो


जो खुद ही बिखरा है,किसी को क्या देगा
टूटते तारे को यूं आजमाया न करो

माना कि तेरे दर्द ने कुछ शेर दे दिए
पर बहुत हुआ अब और सताया न करो

खाता पे मेरी मुझसे नाराज़ भी नहीं
अपने दीवाने को यूं पराया न करो

मैं संग हो गया तो कौन पूछेगा तुझे
ऐ खुदा मुझको इतना रुलाया न करो

टूटेंगी तो सीधे आँखों में चुभेंगी
ख्वाहिशों को सर पे चढाया न करो

Monday, March 17, 2008

जब भूख की ज्वाला जलती है
ईमान भस्म हो जाता है
भूख दफन हो या न हो
इंसान दफन हो जाता है

भरा पेट हो तो भविष्य के
सपने कई जगाता है
एक सूखी रोटी की टुकडा
बच्चों को चोर बनाता है

जाने कितनों के हाथों में
भूखे मरने की रेखा है
शाइनिंग इंडिया में हमने
भूखों को बिलखते देखा है

सोचो उस माँ के बारे मे
जिसके बच्चे कंकाल से हैं
बेबस बाप की आँखों में
कुछ जलते हुए सवाल से हैं

इन बेईमान रईसों के
बाल न बांका होता है
जब भी कोई जुर्म हो तो
शक भूखों पर ही होता है

जिसका पेट भरा हो तो
दिल खाली हो जाता है
भूखा तो अपनी रोटी भी
मिल बाँट कर खाता है

जब भूख की ज्वाला जलती है
ईमान भस्म हो जाता है...

Thursday, March 13, 2008

जब से तकदीर कुछ खफा सी है
जीस्त भी मिलती है गैरों की तरह

शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह

बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह


Monday, March 10, 2008


तुझसे उल्फत की बात कर बैठे
हाय ये क्या गुनाह कर बैठे

पी के लिख बैठे वसीयत अपनी
अपना दिल तेरे नाम कर बैठे

यादों को तेरी रुख्सती देकर
दिल के घर को मकान कर बैठे

डाल के इक नज़र मोहब्बत की
हमको अपना गुलाम कर बैठे

मुझ दीवाने का हाल पूछते हो
तुम ये कैसा सवाल कर बैठे

बारी आई खुदा के सजदे की
हम तुम्हारा ख़याल कर बैठे

ओढ़ कर वो हया की चिलमन को
चेहरा अपना गुलाल कर बैठे

दर्दे दिल का सबब सुनो हमसे
इश्क हम बेपनाह कर बैठे



दिल में दर्द छुपाता हूँ
मैं नज्म ख़ुशी की गाता हूँ

खर्चता हूँ मैं मांजी को
अपना आज बचाता हूँ

पूरे होंगे कह कहकर
ख़्वाबों को भरमाता हूँ

दर्द के सेहरा में रहकर
सबकी खैर मनाता हूँ

करने तकाजे सजदों के
रोज़ ही मस्जिद जाता हूँ

ज़ख्म सहेजा करता हूँ
दर्द से शेर उगाता हूं