भूलें दोहराता हूँ अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर
झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर
तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर
अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर
एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर
बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर
मैं ख्वाब सजाता हूँ अक्सर
क्यों तेरी गलियों में जाकर
खुद को बहलाता हूँ अक्सर
जब जब ईमान बुलाता है
मैं चुप हो जाता हूँ अक्सर
सीने के ज़ख्म नहीं भरते
मैं ठोकर खाता हूँ अक्सर
झूठ कहाँ कह पाता हूं
मैं पीकर गाता हूं अक्सर
तेरे सपनों में आ आकर
मैं तुझे रुलाता हूं अक्सर
अपने सीने से लौ देकर
सूरज सुलगाता हूं अक्सर
एक रोज़ बुना था एक रिश्ता
उसको उलझाता हूं अक्सर
बर्तन घर के न बिक जाएं
मैं खुद बिक जाता हूं अक्सर
2 comments:
vah vah !achchi gazal kahi hai.
do char bar bol bol kar padhen ,
samajh men aa jayega ki kahan bebahar ho rahi, bas ekadh shabd idhar udhar karne se mukammal ho jayegi. i.e.
bhulen dohrata hun aksar,
khvaab sajata hun mein aksar.
jab eeman bulata hai to,
main chup ho jata hun aksar.
jakhm nahin bharte seene ke,
main thokar khata hun aksar.
sach itna ghuta hai bheetar,
main peekar gaata hun aksar.
tere sapnon men aa aakar,
tujhe rulaata hun main aksar.
jo rishta ek roj buna tha,
usko uljhata hun aksar.
baharhaaal shaandaar likh rahi hain. itni vyastta ke bavazood.
keep it up.
hold the feelings.
Brijesh Sharma
भले दोहराता हूं अक्सर....
इनमें आए भाव मुझे बेहद अच्छे लगे..
हालांकि, विनम्रतापूर्वक यह ज़रूर कहना चाहूंगा कि आपकी लेखनी पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे कॉलेज के लड़के लड़कियां लिखते हैं, हो सकता है आप इससे सहमत न हों लेकिन मैंने वही कहा तो मुझे महसूस हुआ...
लेकिन आप लगातार लिख रही हैं, यह अच्छी बात है और कुछ कुछ अच्छा भी लिख रही हैं, इसलिए लिखना जारी रखिए और हो सके तो कुछ अच्छा साहित्य पढ़ने का भी समय निकालिए....
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