Monday, March 24, 2008

इस कदर वो शख्स ग़म-ए- दौरां का शिकार है
शमा-ए-बज्म था वो अब चरागे मजार है

जी भर के ज़ख्म दीजिये अब आपकी मर्ज़ी
वक़्त की चारागरी पे हमको ऐतबार है

आओ फरिश्तों,आलमे फानी से ले चलो
शबे वस्ल के लिए ये दिल बेकरार है

आबे हयात से तेरे अश्कों से भिगो दे
दामन मेरा ज़रा ज़रा सा दागदार है

और किसी इश्क की ख्वाहिश वो क्या करे
इश्के हकीकी में जो दिल गिरफ्तार है

2 comments:

पारुल "पुखराज" said...

waah..kya baat hai....bahut khuub

Anjul Mishra said...

waah..maje la diye..bahut umda..len den ki sadi wala vyang bhi kamaal hai