Thursday, March 13, 2008

जब से तकदीर कुछ खफा सी है
जीस्त भी मिलती है गैरों की तरह

शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह

बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह


1 comments:

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

sachche ehsaasat ko seedhe seedhe kah dene ki shiddat kabile tareef hai.
likhti rahiyega.
Brijesh
Gwalior