Tuesday, March 25, 2008

एक वादा...

अगर मैं तेरा आसमान नही
तो कोई बात नही
मुझे अपनी ज़मीन बनाकर
अपने पैर टिका ले
भले ही आसमान को तू छू न सके
तेरे पैरों की ज़मी हिलने नही दूंगी
तुझे डगमगाने नही दूंगी
ये वादा है मेरा....


अगर मैं तेरी मंजिल नही
तो कोई बात नही
मुझे अपना रास्ता ही बना ले
तेरी मंजिल से तुझे मिलाने से पहले
तेरा साथ नही छोडूंगी
ये वादा है मेरा....

अगर मैं तेरे जीवन की रौशनी नही
तो कोई बात नही
मुझे अपनी जिंदगी की स्याही बना ले
खुली आंखों से रौशनी में जी ले
जब आँखें थक कर बंद होंगी
तो तू अकेला नही होगा
मैं ही मैं दिखूंगी तुझे
ये वादा है मेरा....

अगर मैं तेरी खुशी नही
तो कोई बात नही
आंसू का कतरा बनाकर
पलकों में छुपा ले
जब खुशी तुझसे रूठेगी
तब तेरे सारे ग़मों को साथ ले
मैं बह निकलूँगी
ये वादा है मेरा.....



5 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छी रचना. शानदार. अपनी ही एक नज़्म का एक बंद याद आ गया :
"गर तेरा ग़म ही है ख़ुशी मेरी
तुझ को मेरी ख़ुशी पे ग़म क्यों है ?
तुझ को उल्फ़त नहीं मुझ से, न सही
पर तेरी आँख आज नम क्यों है ?
मेरी आँखों में हैं समंदर, और
क़तरे तेरी नज़र से बहते हैं !"
बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए. मेरी नज़्म, अगर चाहें तो, यहाँ है :
http://kisseykahen.blogspot.com/2007/12/blog-post_1106.html

Unknown said...

this is just beautiul...meri nazron mein achchi rachna woh hoti hai,jisme bhav ho to jane pehchane par phir bhi unmein kuch naya ho.. ya pehli baar vyakt kiye gaye ho..aur woh man ko chuein.. isme woh sab hain..

दिपाली "आब" said...

ultimate...

Divya Prakash said...

इतने आसान शब्दों मैं इतने लंबे साथ का वादा कर दिया .....बहुत बहुत बधाई यूं ही लिखते रहिये ....
दिव्य प्रकाश

ललितमोहन त्रिवेदी said...

Man ki anant gaharai men doobkar
sachmuch moti nikala hai aapne.
Pratham aur antim band men samarpan
ki parakashtha bahut alag tarike se
vyakt ki gayi hai.
L.M.TRIVEDI.