जितने भी इखलाक थे उस नादारी में
गुम हो गए सब दौलत की आबदारी में
यादों से मेरी मुझे महरूम न करो
ताज बन जाते हैं ऐसी यादगारी में
नाकाबिले शिफा हूँ,बीमारे इश्क हूँ
यूं वक्त न जाया करो तीमारदारी में
ए कजां जाओ अभी सोना नहीं मुझको
लुत्फ़ अब आने लगा अख्तर शुमारी में
ख्वाहिशों ने भी आना छोड़ दिया है
जितनी थीं वो बह गयी गौहरबारी में
नादारी- गरीबी
आबदारी - चमक दमक
नाकाबिले शिफा- लाइलाज
कजां- मौत
अख्तर शुमारी- बेचैनी से रात काटना
गौहरबारी- आंसू बहाना
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
3 comments:
वाह पल्लवी जी!
सब शे'र लाज़वाब हैं।
और आपकी उर्दू पर पकड़ भी काफ़ी अच्छी जान पड़ती है। लिखती रहिए।
Gazal men aur 'home work' ki zaroorat hai.Radif,kafiyan sahi hai
par 'wazan'ke lihaz se kachh 'unbalanced'lagti hai.Baharhal acchhi kahan ke liye
badhai.
L.M.Trivedi
अपन इतने जानकार तो हैं नही कि खामियां निकालें, बस इतना कह सकते हैं कि बतौर एक पाठक अच्छा लगा इसे पढ़ना!!
शुभकामनाएं!
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